आईपीएस पूरन कुमार आत्महत्या मामले का तमाम विवरण, महापंचायत ने 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया
आत्महत्या का आरोपपत्र
7 अक्टूबर को चंडीगढ़ स्थित उनके आवास पर पूरन कुमार आत्महत्या के शॉर्ट फायरिंग (या गोली मारकर) की
घटना सामने आई। उनके द्वारा छोड़े गए कथित 8 पेज के नोट में उन्होंने कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों — जिनमें
हरियाणा डीजीपी शत्रुजीत कपूर और पूर्व रोहतक SP नरेंद्र बिजारनिया — का नाम लिया और उन पर मानसिक
उत्पीड़न, छवि धब्बा लगाने और जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया।
पुलिस कार्रवाई और जांच
चंडीगढ़ पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज की है, और बाद में इसमें SC/ST (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम की
कठोर धाराएँ जोड़ दी गईं।
साथ ही, पुलिस ने एक SIT (Special Investigation Team) गठित की है और यह टीम रोहतक में जांच कर रही है।
लेकिन परिवार ने FIR में तथ्य–नामों की कमी की शिकायत की है और कहा है कि आरोपितों के नाम उचित रूप से
शामिल नहीं हुए हैं।
इसके अलावा, परिवार ने अभी तक पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी है, क्योंकि वे कार्रवाई होने
की मांग कर रहे हैं।
महापंचायत की माँग और अल्टीमेटम
रविवार को चंडीगढ़ में एक महापंचायत आयोजित की गई, जिसमें 31 सदस्यीय समिति ने हिस्सा लिया।
महापंचायत ने निम्नलिखित मुख्य मांगें रखीं:
1. हरियाणा डीजीपी शत्रुजीत कपूर को तत्काल पदमुक्त किया जाए।
2. डीजीपी और पूर्व SP बिजारनिया सहित सभी नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी हो।
3. एक न्यायिक (हाईलेवल) जांच हो, ताकि मामले की निष्पक्षता सुनिश्चित हो।
4. जब तक कार्रवाई नहीं होती, पोस्टमार्टम / अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी जाए।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि 48 घंटे के भीतर कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो वे सरकारी काम बंद, सड़कों पर
आंदोलन तथा और उग्र प्रतिक्रिया शुरू करेंगे।
राजनीतिक एवं सामाजिक प्रतिक्रिया
AAP (आम आदमी पार्टी) ने इस मामले को भाजपा सरकार की जातिगत भेदभाव नीति से जोड़कर राष्ट्रीय स्तर पर
उठाने का ऐलान किया है।
Ahlawat खाप और कुछ अन्य गाँव-सभा समूहों ने पूर्व SP बिजारनिया के समर्थन में मोर्चा लिया है और कहा है कि
उन्हें दोषी ठहराने के बजाय निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर सरकार पर दबाव बढ़ाया है।
समाज के दलित समुदाय एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता इस प्रकरण को जातिगत अन्याय और प्रशासनिक दमन के
रूप में देख रहे हैं।
चुनौतियाँ और आगे की राह
एक अहम दिक्कत यह है कि मृतक के परिवार ने अभी तक पोस्टमार्टम की अनुमति नहीं दी, जिससे हत्या या
आत्महत्या की स्पष्ट पहचान करना कठिन हो रहा है।
पुलिस और राज्य सरकार पर दबाव बढ़ गया है कि वे जल्द कार्रवाई करें, लेकिन सावधानी भी बरती जा रही है कि
केस में सभी नियमों और संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन न हो।
यदि महापंचायत की मांगें पूरी नहीं हुईं, तो प्रशासन और सरकार को व्यापक विरोध का सामना करना पड़ सकता
है।
निष्कर्ष
आईपीएस पूरन कुमार की कथित आत्महत्या मामला अब सिर्फ एक व्यक्तिगत घटना नहीं रह गया है, बल्कि यह
न्याय, राज्य उत्तरदायित्व, जातिगत न्याय एवं प्रशासनिक जवाबदेही का प्रतीक बन गया है। महापंचायत द्वारा दिया
गया 48 घंटे का अल्टीमेटम यह संकेत है कि यदि राज्य कार्रवाई में धीमी गति दिखाएगा, तो विरोध तेज हो सकता
है। अब यह देखना बाकी है कि सरकार इन मांगों पर कैसे और कितनी तेजी से उत्तर देती है।